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भारतभक्ति संस्थान


कहने को तो भारत अन्य देशों की तरह विश्व का एक राजनैतिक भूभाग है जिसका एक उज्जवल अतीत है, पुरातात्विक ज्ञान-विज्ञान की विरासत है, प्राकृतिक सौन्दर्य और सम्पदा है. परन्तु हिन्दुओं की मातृत्व प्रधान आध्यात्मिक संस्कृति ने इसे केवल अपने पूर्वजो की भूमि या राजनैतिक इकाई न मानकर इसे धार्मिक आधार पर माता का दर्जा प्रदान किया. वैदिक ऋषियों, पौराणिक इतिहासकारों से लेकर वर्तमान तक के बुद्धिजीवियों और आम जनमानस में इस देश की छवि माता दुर्गा की तरह दैवीय रूप में ही अंकित है. इसकी रक्षा और सेवा का फल केवल इस लोक ही नहीं वरन परलोक के लिए भी सुखदायी बताया गया है. आजादी के संघर्ष के समय गूंजा नारा "वन्दे मातरम" एक मंत्र के समकक्ष पावन माना जाता है.

देश के सर्वांगीण विकास के पीछे लोगों का समर्पण, देश के प्रति जागृत मातृत्व का कारण रहा और वर्तमान की विसंगतियों, भ्रष्टाचार, अनैतिकता और राष्ट्रद्रोह के पीछे इसी भावना का ह्रास ही है. स्वामी विवेकानंद ने इसी भाव को जगाने के लिए ही कहा था की आने वाले वर्षों में हम सबको देश के उद्धार के लिए सभी देवताओं की उपासना छोड़कर केवल भारत माता की आराधना करनी चाहिए.

बाबा मौर्य जी की भी स्पष्ट मान्यता है कि अन्य सभी देवी देवताओं, सनातन संस्कृति, वैदिक ग्रंथों और संस्कारों की रक्षा के लिए हमें राष्ट्रभक्ति को धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से स्वीकार करना होगा. राष्ट्र के लिए किये गए समर्पण और शुभ कार्यों को पुण्य तथा इससे विमुखता को घातक पाप के रूप में अंगीकार करना होगा. "सब धर्मों से बढकर भाई होता राष्ट्र धरम" इसे अपने जीवन का मूल मंत्र स्वीकार करना होगा. राष्ट्र और धर्म को समर्पित "भारत माता की आरती" यह कार्यक्रम बाबाजी द्वारा प्रारम्भ किया गया था. इसी से प्रभावित होकर समविचार वाले मित्रों के साथ मुंबई में "भारतभक्ति संस्थान" की स्थापना की गई थी. इसका मूल उद्देश्य राष्ट्रभक्ति का प्रचार प्रसार था. स्थापना के समय से ही संस्थान अनेक संस्थाओं के साथ मिलकर विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में संलग्न है. प्रारंभ से संस्थान का मूल उद्देश्य किसी स्थाई गतिविधि को संचालित करना नहीं रहा. इसलिए किसी भी प्रकार का भौतिक निर्माण करने के स्थान पर बौध्दिक आन्दोलन पर अधिक बल दिया. इसीलिये सम-विचार वाले संस्थाओं को कला एवम् अन्य सहयोग प्रदान करना भारतभक्ति संस्थान का मुख्य कार्य रहा है.


भारतभक्ति संस्थान वीडियो झलकिया



बाबा सत्य नारायण मौर्य

‘बाबा' अनेक विधाओं को अपने अंदर समेटे हुऐ भारतीय संस्कृति को समर्पित एक अद्भुत व्यक्त्वि.....जिसे शब्दों से जाना- समझा नहीं जा सकता। सागर सी गहराइयों वाला जीवन जिसमें जितना गहरे उतरो उतनी ही विविधता मिले, पर्वत की तरह उन्नत चिंतन, जितना चढ़ो उतना ही उॅचा और भी दिखता रहे।

दुनियॉ बहुत बड़ी है ढॅूढने पर ऐसे प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति दुनियॉ में मिल जाये...पर वह गॉव के सीधे साधे देहातियों से लेकर देश-विदेश के बुद्धिजीवियों तक महानगरीय सभ्यता में पले बड़े फेशनेबल युवावर्ग से लेकर कस्बाई बुजुर्गों तक, मजदूरों से लेकर व्यापारियों तक, साधु-संतों के आश्रमों से लेकर पश्चिमी रंग में रंगी फिल्मी नगरी तक, किसानों से लेकर सैनिकों तक सभी को समान रूप से अपना सा लगता हो, ऐसा मुश्किल है।

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